Saturday, 30 January 2016

Nabi ki shan

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एक शख्स दूर दराज़ से सफर तय करके मदीना पहुँचा । उस शख्स को ख्वाहिश थी कि नबी ए करीम (सलल्ललाहो अलैही वसल्लम ) के रौज़ा ए अक़दस पर हाज़िरी दूँ ।

वह शख्स जब मदीना पहुँचा तो शाम हो चुकी थी ।ग़ुरबत का आलम था । जो रक़म साथ लाया था, वो भी ख़त्म हो चुकी थी । फिक्र हुई कि शाम को क्या खाऊंगा...?

दिन भर का भूखा था और बहुत मायूस हो गया ।

फिर अचानक ख्याल आया कि यहाँ तो वो मौजूद हैं, जो पूरी दुनिया का ख्याल रखते हैं ।

उठ कर प्यारे आक़ा के रौज़ा ए अकदस पर पहुँचा और अर्ज किया........

या रसूलअल्लाह..!!

मैं सुबह से बहुत भूखा हूँ.

मुझे कुछ खाने को अता करें
मैं आपका मेहमान हूँ । ये कहकर वो शख्स वहीं लेट गया ।

नींद का ग़ल्बा जारी हुआ क्या देखता है कि ख्वाब में हज़रत अबूबक्र और हज़रत उमर रजियल्ललाहू अन्हु तशरीफ लायें हैं और उस शख्स से आपने फरमाया कि
ए फालाँ उठो..!!

रसूले करीम ने तुम्हारे लिए रोटी भेजी है । उस शख्स ने ख्वाब में ही वो रोटी हज़रत उमर से ले ली और खाने लगे

अभी आधी रोटी ही खाई थी कि आँख खुल गई । जब आँख खुली तो देखा कि वो शख्स वहीं लेटा था और रोटी का आधा हिस्सा हाथ में था ।

√‎सुब्हान_अल्लाह‬

ये शान है मेरे आक़ा (सलल्ललाहो अलैही वसल्लम ) की

[ सीरत उन नबी - 77/167 ]

Tuesday, 26 January 2016

Republic Day

इंक़लाब ज़िंदाबाद,
मुल्क में या रब मेरे इंसानियत क़ायम रहे..!!
यह दुआ है देश की हर ख़ासियत क़ायम रहे..!!
सारे इंसाँ एक हो कर हिन्द को रौशन करें..!!
और इसके साथ ही जम्हूरियत क़ायम रहे..!!
( αιнiriri )

Saturday, 23 January 2016

Islamic

एक क़ाफ़िर ने एक बुज़ुर्ग से कहा कि, अगर आप मेरे 3
सवालोँ का जवाब दे दो तो मैँ अभी ईमान ले
आऊँगा और मुस्लमान हो जाऊँगा।
बुज़ुर्ग ने कहा: ठिक है पुछो।
क़ाफ़िर ने सवाल किया:
1. जब आपलोग हर काम'अल्लाह'
की मर्ज़ी से करते
हैँ, तो फिर इंसानो को ज़िम्मेदार क्यो मानते
हो?
2. जब शैतान आग से बना है तो दोज़ख़ की आग
उस
पर किस तरह असर कर सकती है? और
3. जब आपलोग को'अल्लाह'नज़र
ही नहीँ आता तो उसे महसूस करते
कैसे हो?
इस पर उस बुज़ुर्ग ने क़ाफ़िर को झल्लाकर एक
मिट्टी का ढेला उठाकर दे मारा। क़ाफ़िर दर्द
से तिलमिलाता हुआ एक क़ाज़ी के पास जाकर
बुज़ुर्ग के ख़िलाफ़ उसकी शिकायत दर्ज़ कर
दी।
क़ाज़ी ने बुज़ुर्ग से पुछा: जनाब, आपने
मिट्टी का ढेला आख़िर उस बेचारे
को क्योँ मारा?
बुज़ुर्ग ने कहा: मैनेँ इन्हेँ
ढेला नहीँ मारा बल्कि इनके
सवालोँ का जवाब दिया था।
क़ाज़ी ने कहा: वो कैसे?
बुज़ुर्ग ने जवाब दिया:
1. इनके पहले सवाल का जवाब ये है, की मैनेँ ये
ढेला'अल्लाह'की मर्ज़ी से मारा था,
तो फिर
ये मुझे ज़िम्मेदार क्योँ मान रहे हैँ।
2. इनके दूसरे सवाल का जवाब ये है, की इंसान
भी तो मिट्टी से बना है, तो फिर
मिट्टी के ढेले
ने इनपर असर कैसे किया। और
3. इनके तीसरे और आख़िरी सवाल
का जवाब ये है,
की जब इन्हेँ दर्द नज़र
नहीँ आता तो ये उसे महसुस
कैसे कर सकते हैँ?
इतना सुनकर वो क़ाफ़िर हैरत मेँ पड़ गया और
इस्लाम की सदाक़त पर ईमान ले आया....।

Thursday, 14 January 2016

Hussaini koun

मेरे हुसैन ने इस्लाम का सच्चा चेहरा दिखाने के लिए मदीना छोड दिया ना कि परवाह अली अकबर चला जायेगा ना कि परवाह अब्बास चले जायेँगे ना कि परवाह बचपन अली अशगर का चला जायेगा ना कि परवाह कासिम कि जवानी लुट जायेगी ना कि मेरे हुसैन ने किसी चीज कि परवाह बल्कि तुम्हेँ इस्लाम का सच्चा चेहरा दिखाने के लिए मदीना भी छोड दिया आ गये मक्का . मक्का मेँ भी मेरे हुसैन को यजिदियोँ ने नहि छोडा खत पे खत डेढ सौँ खतोँ का ताँता बाँध दिया मजबूरन मेरे हुसैन को मक्का भी छोडना पडा गये मेरे हुसैन इस्लाम बचाने के लिए कूफा कि तरफ .तकदीर ने कूफा जाने नही दिया अभी रास्ते मेँ हैँ दोपहर का वक्त है अभी सामान उतरा भी नहीँ है दुश्मन की फौज आ गयी इमामे हुसैन को गिरफतार करने लिए मेरे हुसैन ने सामान उतारा दुश्मन के जानवरोँ को देखा जानवर प्यासे है घोडे प्यासे हैँ मेरा हुसैन जो पानी अली असगर के लिए लाया था जो पानी अली अकबर के लिए लाया था जो पानी सकीना के लिए लाया था मेरा हुसैन जो पानी छोटे छोटे बच्चोँ के लिए लाया था वो पानी मेरे हुसैन ने दुशमनोँ के जानवरोँ को पिला दिया.... खुद तो खाते नही औरोँ को खिला देते हैँ कैसे साबिर हैँ आका के घराने वाले ....मेरे हुसैन को जो गिरफ्तार करने आये थे मेरे हुसैन ने उंन्ही के जानवरोँ को पानी पिला दिया छोटे छोटे बरतन पानी के खाली हो गये आ गया नमाज का वक्त मेरे हुसैन ने इन गिरफ्तार करने वालोँ से फरमाया हुर एक बात बताओ हमारे खेमे मे आजान हो गयी तुम अपनी जमात अलग करोगे कि हमारे साथ नमाज पढोगे इमामे हुसैन ने अपने खेमे आजान कहलवा कर ऐलान करवा दिया ऐ यजिदियोँ सुन लो कोई हुसैनी तुम्हारी इबतेदा मेँ नमाज नही पढेगा तुम हमारे नजदीक इमामत के लायक नही हो हमारी नमाज तुम्हारे पीछे नही होगी तुम भी अपने आप को मुसलामन कहलाते हो तुम हो यजिदी हम भी अपने आप को मुसलमान कहलाते हैँ लेकिन हम हैँ हुसैनी ..ऐलान करवा दिया किसी हुसैनी कि नमाज किसी यजिदी के पीछे नही होगी लेकिन उनकी ये हिम्मत नही थी कि बारगाहे हुसैनी मेँ लब खोल के ये कह सके कि हम भी अपनी जमात अलग करेँगेँ बल्कि हुर ने क्या कहा ऐ इबने रसूल अल्लाह आप परवाह मत किजिए नमाज तो हम आप के पीछे ही पढेँगेँ इन यजिदियोँ कि ये हिम्मत ना हुई कि ये कह पाते कि हम भी नमाज आप के पीछे नही पढेँगेँ क्योँ कि इनकी आत्मा जानती थी रुह पहचानती थी कि सच्चे यही हैँ हक वाले यही हैँ हम तो झूठे हैँ हम तो मक्कार हैँ हम तो गद्दार हैँ हम नमाज जरुर पढते हैँ कलमा जरुर पढते हैँ तिलावत जरुर करते हैँ लेकिन सच्चाई हमारे साथ नही है.......ये वही कौम के लोग हैँ जो आज इमामे हुसैन कि शहादत पर मातम करते है ताजिया रखते हैँ बेहुरमती करते हैँ और कहते हैँ हम हुसैनी हैँ ........

Islamic

अहले सुन्नत व जमाअत की मस्ज़िद के बहार कहीँ
कही लिखा मिलता है की
इस मस्ज़िद में "वहाबी,
देवबंदी, अहले हदिस, को नमाज़ पढ़ना मना है।"
क्यों
" जब अरब शरीफ में तुर्की सुन्नी मुसलमानों की
हुकूमत थी, तब उस समय क़ाबा शरीफ में बहुत माकूल
इंतज़ाम था नमाज़ के लिए। चारों इमामों को
मानने वालों के लिए। चारों मज़हब के इमाम के
चार मुसल्ले लगवाए हुए थे।
मजहबे हम्बली, हनफ़ी,
मालकी, साफई, और उस वक़्त में सब अपने अपने
ईमाम के पीछे नमाज़ पढ़ते थे , और कोई भी मसला
भी नही होता था।
तुर्किय हुकूमत "अहले सुन्नत व
जमाअत" के अक़ाएद के थे।
मगर 12 वीं सदी हिजऱी
में फित्नाये "वहाबियत" (उर्फ़ शैतानियत) का आगाज़ हुआ। "आले
सऊद और आले शैख़ ये दोनों ने मिलकर, क़त्लेआम और
कोहराम मचा के जबरदस्ती तुर्कियों से खून खराबा
कर के हुकूमत छीनी।
"आले सऊद" जिसकी हुकमत है अरब शरीफ में, ये इतना बड़ा फितनागड़ हुआ की
इसने अरब शरीफ का नाम अपने खानदानी "सऊद" के
नाम से आगाज़ करवाया। जब की हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम , और सारे साहबे कराम ने भी नाम
में बदलाव नही किये मगर इन खबीस वहाबियों ने किया।
"अब आले शैख़" जो की "अब्दुल वहाब नज़दी-जहन्नमी" के औलाद है।
इनलोगों ने मक़्क़ा शरीफ और मदीना शरीफ पर
हमला करने से पहले एक मुआहेदा किया की जब
हमारी हुक़ूमत आ जायेगी तब, आले सऊद बादशाहियत करे और आले शैख़ सारे मज़हबी
मामलात को देखेंगे, मस्ज़िद, ईमामत, ईमाम, मदरसे,
मुफ़्ती, मुहद्दिस, मुज़द्दिद, और दीगर मज़हबी
मामलात को देखेंगे।
ये मुआहेदा होने के बाद 200
लोगों के साथ इन मरदुदो ने मक़्क़ा शरीफ और मदीना शरीफ पर
हमला किया। और मस्जिदे-नबी के ईमाम को मुसल्ले पर ही तलवार से क़त्ल किया,
मगर
तुर्की हुकूमत ने हथियार डाल दिए ये कह कर की हम
"हरमे रसूल" में क़त्ल नही करेंगे और खुद क़त्ल हो गए
मगर दिफा न किया .क्यों के ये लोग दीनदार और पक्के सुन्नी थे।
और इस तरह से वाहबिया हुकूमत शुरू हुई। इनकी हुकूमत में सबसे पहला जो काम किया
गया वो था, "जन्नतुल बक़ी और जन्नतुल माला" के
तमाम मज़ारों और क़ब्रों को जमींबोस किया (तोड़ दिया)।
जन्नतुल बक़ी के मज़ारों पर बुलडोज़र चलवाया,
फावरों और गेती से अहले बै'अत के कब्रों को उखाड़
फेंका
और उस वक्त जन्नतुल बक़ी में "हज़रते उस्मान रदियल्लाहो अन्हो का बहुत ही शानदार मज़ार था जिसे इनलोगों उखाड़ फेका, हत्ता के सारे
सहाबा-ए-कीराम की कब्रे मुबारक को जमींबोस
किया।
और उस वक़्त के नज़दी "गुम्बदे खीज़रा" को सबसे बड़ा "बूत-खाना" मानते थे और आज भी उनकी औलाद है जिनका भी यही अक़ीदा है।
मगर
उस वक़्त अल्लाह ताआला का खास करम हुआ अपने
महबूब के रौज़ए अक़दस पर की ये जालिम लोग
"गुम्बदे-खिज़रा" को गिराने में कामयाब ना हुए।
और
ये लोग "अहले सुन्नत व जमाअत" को मुश्रिक़ समझते
थे और आज भी समझते है, हालांकि वो खुद ही क़ाफ़िर और जहन्नमी है.
अब
फैसला आप के हाथ में है, क्या ऐसे क़ातिल और गुस्ताखे रसूल, वहाबी-नज़दी काफिरो और इनके मानने वाले को अपनी सुन्नी मस्ज़िदो में नमाज़ पढ़ने देना चाहिए ?
जो हमारे बुजुर्गों के क़ातिल है।

Saturday, 9 January 2016

Hussain

दुश्मने अहलेबैत पर शिद्दत कीजिये
बागियों की क्या मुरव्वत कीजिये
गैज में जल जाये खारजियों के दिल
या अली या अली की कसरत कीजिये
जो सादात का बेअदब गुस्ताख हो
उनकी तारीखी मरम्मत कीजिये
या हुसैन या हुसैन जा बजा
मिदहते सैय्यदुश् शोहदा कीजिये
जो सैयदों से जो उलझा नासीबी बदचलन
कुछ न फिर उसकी रीआयत कीजिये
अहलेबैत का मुहिब जो भी मिले
दिल से उसकी खूब इज़्ज़त कीजिये
अहादीस ए नबवी :
सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम
मैं तुम में दो भारी चीज़ छोडे जाता हूँ
अल्लाह की किताब
और
मेरे अहलेबैत! मैं तुम्हे अपने अहलेबैत के बारे में अल्लाह
की याद दिलाता हूँ और उससे डराता हूँ। इस जुमले
को हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने दो बार फ़रमाया।
(मिश्कात शरीफ प 568)
ऐ लोगो ! मैंने तुम्हारे दरमियान वो चीज़ छोड़ी है के
अगर तुम इसको पकडे रहोंगे तो कभी गुमराह न होंगे।
(मिश्कात शरीफ 569)
मेरे अहलेबैत तुम लोगो के लिए नूह अलैहिस्सलाम की
कश्ती की मानिंद है। जो शख्स कश्ती में सवार हुआ
उसने नजात पायी और जो कश्ती में सवार होने से
पीछे रह गया वो हलाक़ हुआ।
( मिश्कात शरीफ 573 )
ये सारे उसूल क़यामत तक के लिए है। जिसने समझ उसके
लिए दीनो दुनिया की कामयाबी है।
वफाशीआरि अहलेबैत के लिए वाजिब है कुल उम्मत
पर।
��labbaik ya hussain ��

Yaade

Rishto Me Apne Bohat Milte Hein Lekin!
Rishte Apnane Wale Bohat Kam Hotay
Hein...