Tuesday, 14 June 2016

हज़रते बिलाल हब्शी

हज़रत बिलाल हब्शी रज़ियल्लाहु अन्हू को जब जलते हुए कोयलों पर लिटा कर कोड़े मारे जा रहे थे तब रास्ते से गुज़रते हुए किसी शख़्स ने उनसे कहा कि:
"बिलाल बड़ी अजीब कहानी है, तुम कोयलों पर लेटे हो, वह कोड़े मार रहा है और तुम मुस्कुरा रहे हो"
तो हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हू ने हंस कर फ़रमाया:
"जब तुम बाज़ार जाते हो और कोई मिट्टी का बर्तन भी ख़रीदते हो तो उसको भी ठोक-बजा के देखते हो कि इसकी आवाज़ तो ठीक है? कहीं कच्चा तो नहीं है..
बस मेरा मालिक(अल्लाह) बिलाल को ख़रीद रहा है, देख रहा है कहीं बिलाल कच्चा तो नहीं है.. मैं कहता हूँ ऐ मालिक ख़रीद ले बिलाल को, चमड़ी उधड़ भी जायेगी तब भी हक़-हक़ की आवाज़ ख़त्म नहीं होगी" (सुब्हान'अल्लाह)

Monday, 13 June 2016

☀✨गर्मियों का रोज़ा✨☀

➡ह़ज्जाज बिन यूसुफ़ एक मर्तबा दौराने सफ़रे ह़ज मक्कए मुकर्रमा व मदीनए मुनव्वरह के दरमियान एक मन्ज़िल में उतरा और दोपहर का खाना तय्यार करवाया और अपने ह़ाजिब (यानी चौबदार) से कहा कि किसी मेहमान को ले आओ! ह़ाजिब ख़ैमे से बाहर निकला तो उसे एक आराबी लेटा हुआ नज़र आया, इसने उसे जगाया और कहा: "चलो तुम्हे अमीर ह़ज्जाज बुला रहे हैं"!
आराबी आया तो ह़ज्जाज ने कहा: "मेरी दावत क़बूल करो और हाथ धोकर मेरे साथ खाना खाने बैठ जाओ"!आराबी बोला: "मुआ़फ़ फ़रमाइए, आपकी दावत से पहले मैं आपसे बेहतर एक करीम की दावत क़बूल कर चुका हूं"!ह़ज्जाज ने कहा: "वो किसकी"?आराबी बोला: "अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ की जिसने मुझे रोज़ा रखने की दावत दी और मैं रोज़ा रख चुका हूं"!ह़ज्जाज ने कहा: "इतनी सख़्त गर्मी में रोज़ा"?आराबी ने कहा: "हां, क़यामत की सख़्त त़रीन गर्मी से बचने के लिए"!ह़ज्जाज ने कहा: "आज खाना खा लो और ये रोज़ा कल रख लेना"!
आराबी बोला: "क्या आप इस बात की ज़मानत देते हैं कि मैं कल तक ज़िन्दा रहूंगा"!ह़ज्जाज ने कहा: "ये बात तो नही"!आराबी बोला: "तो फिर वो बात भी नही"!ये कहा और चल दिया!
(रौज़ुर्रियाह़ीन, सफ़ह़ा-48)
प्यारे इस्लामी भाईयों और इस्लामी बहनों,
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ का करोड़ करोड़ एह़सान हैं कि ये रमज़ानुल मुबारक हमने अपनी ज़िन्दगी में पाया! भले ही इस बार के रोज़े बहुत शदीद गर्मी में आए हैं मगर इस गर्मी से ड़रकर रोज़े क़ज़ा मत कर देना क्या पता अगला माहे रमज़ान नसीब होगा भी या नही?और ये ख़याल मत करना कि 'इस साल गर्मी ज़्यादा हैं मगर अगली साल रोज़े ज़रूर रखेंगे' हां, अगर ज़िन्दगी बाक़ी रही तो ज़रूर रखेंगे लेकिन ज़िन्दगी का कोई भरोसा नही कि अगले माहे रमज़ान तक हम ज़िन्दा रहे!
इसलिए ये ख़याल करे कि इस बार गर्मी ज़्यादा हैं तो क्या हुआ मेरा रब عَزَّ وَجَلَّ मुझे सवाब भी बेशुमार अ़त़ा फ़रमाएगा!
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ के जो नेक बन्दे होते हैं वो ये जानते हैं कि क़यामत की गरमी के आगे दुनिया की गरमी कुछ भी नही और वो अपने रब عَزَّ وَجَلَّ को राज़ी करने के लिए मुश्किल से मुश्किल नेकी भी कभी नही छोड़ते!
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमें माहे रमज़ानुल मुबारक की क़द्र करने की त़ौफ़ीक़ अ़त़ा करे!

आमीन

Sunday, 12 June 2016

Khusoosan Duaye

सूरेह यासीन" -- फज्र के बाद पढ़ने से हर ख्वाहिश पूरी होती हे
"सूरेह वाकिया" -- मगरिब के बाद पढ़ने से कभी फाका नहीं आता
"सूरेह कौशर " -- दुश्मनो की दुश्मनी से बचाती हे
"सूरेह काफिरुंन" -- मौत के वक़्त कुफ़्र से बचाती हे
"सूरेह इखलाश" -- मुनाफ़िक़ात से बचाती है
"सूरेह फलक" -- हादसों से बचाती हे
"सूरेह नास" -- बसबसो से बचाती हे
ये तोहफा दुसरो को भी दे क्योंकि अल्लाह अज्जओ जल तोहफा देने वालो को पसंद फरमाता है. *आमीन

Friday, 10 June 2016

मौत के वक़्त की कैफियत

मौत के वक़्त की कैफियत
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जब रूह निकलती है तो इंसान का मुंह खुल जाता है होंठ किसी भी कीमत पर आपस में चिपके हुए नही रह सकते... रूह पैर के अंगूठे से खिंचती हुई ऊपर की तरफ़ आती है जब फेफड़ो और दिल तक रूह खींच ली जाती है तो इंसान की सांस एक तरफ़ा बाहर की तरफ़ ही चलने लगती है ये वो वक़्त होता है जब चन्द सेकेंडो में इंसान शैतान और फरिश्तों को दुनिया में अपने सामने देखता है... एक तरफ़ शैतान उसके कान के ज़रिये कुछ मशवरे सुझाता है तो दूसरी तरफ़ उसकी जुबान उसके अमल के मुताबिक़ कुछ लफ्ज़ अदा करना चाहती है अगर इंसान नेक होता है तो उसका दिमाग उसकी ज़ुबान को कलमा ए शहादत का निर्देश देता है और अगर इंसान काफ़िर मुशरिक बद्दीन या दुनिया परस्त होता है तो उसका दिमाग कन्फ्यूज़न और एक अजीब हैबत का शिकार होकर शैतान के मशवरे की पैरवी ही करता है और इंतेहाई मुश्किल से कुछ लफ्ज़ ज़ुबान से अदा करने की भरसक कोशिश करता है...।

ये सब इतनी तेज़ी से होता है की दिमाग़ को दुनिया की फ़ुज़ूल बातों को सोचने का मौका ही नहीं मिलता...। इंसान की रूह निकलते हुए एक ज़बरदस्त तकलीफ़ ज़हन महसूस करता है लेकिन तड़प इसलिए नहीं पाता क्योंकि दिमाग़ को छोड़कर बाकी ज़िस्म की रूह उसके हलक में इकट्ठी हो जाती है और जिस्म एक गोश्त के बेजान लोथड़े की तरह पड़ा हुआ होता है जिसमें कोई हरकत की गुंजाइश बाकी ही नहीं रहती...।

आखिर में दिमाग की रूह भी खींच ली जाती है आँखें रूह को ले जाते हुए देखती हैं इसलिए आँखों की पुतलियां ऊपर चढ़ जाती हैं या जिस सिम्त फ़रिश्ता रूह कब्ज़ करके जाता है उस तरफ़ हो जाती हैं...
इसके बाद इंसान की ज़िन्दगी का वो सफ़र शुरू होता है जिसमें रूह तकलीफ़ों के तहखानों से लेकर आराम के महलों की आहट महसूस करने लगती है जैसा की उससे वादा किया गया है... जो दुनिया से गया वो वापस कभी नहीं लौटा... सिर्फ इसलिए क्योंकि उसकी रूह आलम ए बरज़ख में उस घड़ी का इंतज़ार कर रही होती है जिसमें उसे उसका ठिकाना दे दिया जाएगा... इस दुनिया में महसूस होने वाली तवील मुद्दत उन रूहों के लिये चन्द सेकेंडो से ज़्यादा नहीं होगी भले ही कोई आज से करोड़ों साल पहले ही क्यों न मर चुका हो...।

मोमिन की रूह इस तरह खींच ली जाती है जैसे आटे में से बाल खींच लिया जाता है... और गुनाहगार की रूह कांटेदार पेड़ पर पड़े सूती कपड़े को खींचने की तरह खींची जाती है...।

अल्लाह तआला हम सबको मौत के वक़्त कलमा नसीब फरमाकर आसानी के सात रूह कब्ज़ फ़रमा और नबी ए पाक सल्‍लल्‍लाहु अलैही व-सल्‍लम का दीदार नसीब फरमा...।

आमीन या रब्बुल आलमीन!

HUMARE NABI

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِم  _________________

हमारे नबी
नाम-
हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम               
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हुज़ूर के वालीद/ वालदा का नाम-
/हज़रत अब्दुल्लाह
/हज़रत आमिना
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हुज़ूर के दादा और नाना का नाम-
/हज़रत अब्दुल मुत्तलिब
/हज़रत वहब
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हुज़ूर की पैदाईश का दिन-

१२ रबिउल अव्वल (२० अप्रैल 571 ई.)
  असहाबे फ़ील के वाकिआ से ५५ दिन बाद
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हुज़ूर ने बचपन मे
/हज़रते सुवैबा
/हज़रत आमिना
/हज़रते हलिमा का दुध पिया
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हुज़ूर की बिवीयो के नाम जो हर
    मुसलमान की माँ है।-
/हज़रते ख़दीजा
/हज़रते सौदह
/हज़रते आईशा
/हज़रते हफ्सा
/हज़रते उम्मे सल्मा
/हज़रते उम्मे हबिबा
/हज़रते ज़ेनब
/हज़रते ज़ेनब बिन्ते खुज़ेमा
/हज़रते मैमुना
/ हज़रते जुवेरिया
/हज़रते सफ़िय्या रदियल्लाहु तआलाअन्हा
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हुज़ूर के दो साहबज़ादो के नाम -
जिनका विसाल बचपन ही मे हो गया था।
/हज़रते क़ासीम
/हज़रते इबराहीम
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हुज़ूर की चार साहिबज़ादीयो के नाम-
/हज़रते ज़ेनब
/हज़रते रूकय्या
/हज़रते उम्मे कुलसूम
/हज़रते फातिमा
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हुज़ूर के १२ चाचाओ के नाम-
/हारिस
/अबू तालिब
/जुबैर
/हम्ज़ा
/अब्बास
/अबू लहब
/गैदान
/मुकव्विम
/ज़िरार
/कुसम
/अब्दुल कअब
/जहल।

     (इनमे से सिर्फ हज़रते हम्जा व हज़रते अब्बास ने इस्लाम क़बूल किया ।)
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हुज़ूर के 3 नवासो के नाम-
/हज़रत इमाम हसन
/हज़रत इमाम हुसैन
/हज़रत इमाम मोहसिन-

हुज़ूर के 3 नवासीयो के नाम-
/हज़रते ज़ैनब
/हज़रते उम्मे कुल्सुम
/हज़रते रूकय्या

    (हज़रते मोहसिन व हज़रते रूकय्या का
     विसाल बचपन मे हो गया था )
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हुज़ूर की 6 फूफ़ियो के नाम-
/हज़रते सफिय्या
/अतिका
/उमेमा
/उम्मे हकिम
/बर्रह
/अरवI
  (इनमे सिर्फ हज़रते सफिय्या इमान लाई)
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हुजूर के खुददामे खास के नाम-

/हज़रत अनस
/हज़रत रबिआ
/हज़रत ऐमन
/हज़रत अब्दुल्लाह
/हज़रत उक्बा
/हज़रत अस्लअ
/हज़रत अबुज़र गिफारी
/हज़रत मुहाजिर मौला
/हज़रत हुनैन
/हज़रत नुएम
/हज़रत अबुल ह़मर
/हज़रत अबुस्समह़
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दरबारे नुबूवत के ख़ास नात ख़्वा के नाम-

/हज़रते कअब बिन मालिक
/हज़रत अब्दुल्लाह बिन र वाहा
/हज़रत हस्सान
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हुजूर के खुसूसी 4 मुअज़्जिन के नाम-
/हज़रते बिलाल
/हज़रतअब्दुल्लाह
/हज़रत सअद बिन आएद
/हज़रते अबू महज़ुरा
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हुजूर ने किन सहाबी को कोनसी
मस्जिद जलाने का हुक्म दिया-

/मस्जिदे ज़रार
जो मुनाफिको, गुमराहो न बनाई थी मुसलमानो को बहकाने के लिये

/हज़रते मालिक
/हज़रते मअन को मस्जिदे ज़रार को जलाने का हुक्म दिया था़
(इस के बारे सुरह तौबा आयत 107 मे आया है )
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हुजूर के दामादो के नाम-

/हजरत अबूल आस
/हज़रत उस्मान गनी
/हज़रत अली शेरे खुदा
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हुजूर के ससुर के नाम (जिनकी बेटीयो से आपने निकाह किया)-

/खुवेल्दा बिन असद
/ज़मआ
/हज़रत अबू बकर सिद्दिक
/हज़रत उमर फारूक
/हुजैफा
/अबू सुफयान
/हारिस
/हारिस बिन ज़रार
/हुय्यि बिन अख़तब
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Khutbe ka ahtaraam

फजीलत-ए-खुत्बा-ए-जुम्मा....`♥हजरत अबु हुरैरा (रजी अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है की,रसुलल्लाह! (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने इरशाद फरमाया--"जो शख्स अच्छी तरह वजु करता है फिर जुम्मा कीनमाज के लिए आता है खुब गौर से खुत्बा सुनता है, खुत्बे के दौरन खामुश रहता है।, तो इस जुम्मा से गुजीस्ता जुम्मा तक माजीद 3 दिन केगुनाह माफ कर दिये जाते है।,और जिस शख्स ने कंकरियो को हाथ लगया (यानी दौराने खुत्बा उसने खेलता रहा या चटाई कपड़ा वगैरह से खेलता रहा) तो उसने फजुल काम किया"(मुस्लिम, 1/283)`♥दुआ की गुजारिश है :-

Khujoor ka barkat

खजूर से इफ्तार की हिकमत
खजूर से रोज़ा इफ्तार करने मे ये हिकमत है कि खजूर गिज़ाइयत से भरपुर फल है_____
इस से जिस्मानी तवानाई हासिल होती है____
खजुर ताज़ा खुन पैदा करती है______
● कमज़ोरी
● थकावट
● कमर दर्द
● पठ्ठो का दर्द
● हाथ पांव सुन होने
● कफ
वगैरह के लिए मुफीद गिज़ा है

हज़रत अनस रदीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि____
रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मगरिब की नमाज़ से पहले चंद तर खजुरो से रोज़ा इफ्तार फरमाते थे_________
अगर तर खजुरे वक्त पर ना मिलती तो सुखी खजुरो ( छुहारो ) से इफ्तार फरमाते थे_____
ओर अगर खजुरे भी ना होती तो चंद घुट पानी पी लेते थे___
तीरमीज़ी शरीफ
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस अमल को अगर साइंस की निगाह से देखा जाए तो मालूम होता है की_____
जब हम खजुर से रोज़ा इफ्तार करते है तो उसकी मिठास मुह के थुक मे मील कर ग्लुकोज मे बदल जाती है_____
जिस से जिस्म मे हरारत और तवानाई हासिल होती है
और
इस का उलटा अगर हम तली हुई चटखारेदार चीजे इस्तेमाल की जाए तो इस से पेट मे तेजाबीयत की वजह से सिने मे जलन और बार बार प्यास लगती है______
खजुर खाने से
● दिमागी कमजोरी दूर होती है
● याददाश्त बढती है
● दिल मे ताकत पैदा होती है
● खुन की कमी दुर होती है
● गुरदे मजबुत होते है
● दमा मे फायदा होता है
अरबो मे कहावत है कि साल मे जितने दिन होते है इतने ही खजुर के इस्तेमाल के फायदे है___
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