भटकी हुई हयात के रहबर हुसैन हैं
सेहरा हैं करबला तो समन्दर हुसैन हैं
खुशबू पयामे हक की हैं सारे जहान में
गुलज़ार-ए-मुस्तफा के गुल-ए-तर हुसैन हैं
इश्क़े हुसैन से मेरी उक़बा संवर गई
सब्रो रज़ा के आज भी पैकर हुसैन हैं
बेशक हयात-ओ-मौत का हैं फैसला यही
जी कर यजीद मर गया, घर-घर हुसैन हैं
जान अपनी दे के जिन्दगी बख्शी हैं दीन को
हर दिल का,हर निगाह का मेहवर हुसैन हैं
हैदर के नूरेऐन जिगर गोशा-ए-रसूल
मासूम और बाला-ओ-बरतर हुसैन हैं
'आलम' उनके दम से ही रौशन हैं कायनात
दीन-ए-मुबीं के माहे-मुनव्वर हुसैन हैं
(रदी अल्लाहु ता'ला अन्हु)
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